Monday, May 16, 2016

Surya Chalisa, Aarti, Kavach


This application is a combination of Surya Dev Chalisa, Surya Dev ji Aarti and Surya Dev Stotram.

Surya is the chief of the Navagraha, the nine Classical planets and important elements of Hindu astrology. He is often depicted riding a chariot harnessed by seven horses which might represent the seven colors of the rainbow or the seven chakras in the body. He is also the presiding deity of Sunday. Surya is regarded as the Supreme Deity by Saura sect and Smartas worship him as one of the five primary forms of God. The Sun god, Zun, worshipped by the Afghan Zunbil dynasty, is thought to be synonymous with Surya.

Surya or Sun is the source of energy for the whole universe. We can not imagine even a day without sun. All living beings get the energy and vitality from the Sun. Due to these qualities of Sun, it has been considered as sun God in ancient scriptures. In Vedic Astrology, Sun is considered as the significator of Health, eyes, social prestige, father and profession. When Sun is weak, issues may happen in all the areas mentioned above. When we offer water to Sun, Sun gets strengthened and all the areas mentioned above get better. It is especially a must for the people struggling with their health and profession.

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This Application is dedicated to Surya Dev.

Surya Dev Mantra:
Om hiram hrim sah suryaya namah


|| श्री सूर्य चालीसा ||


॥ दोहा ॥  

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग। 
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख चक्र के संग ..

॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर। 

विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते। 

सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढि़ रथ पर। 

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते। 

 मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।  

द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै। 

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई। 

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते। 
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन। 

छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते। 

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित। 

ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा। 

पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम ​​सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन। 

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा। 

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे। 

अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै। 

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही। 

मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा। 

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी। 

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै। 

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं। 

॥ दोहा ॥


भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य .. 

॥ इति श्री सूर्य चालीसा ॥

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